पित्तज सिरो-पीड़ा
पहिचान-रोगी का सिर आग की तरह जलने लगता है |
नाक में भी दाह (जलन) हो-साथ ही, मस्तक में तेज-शूल सा दर्द हो, वह पित्त के कारण होने वाली मस्तक-पीड़ा होती है |
उपचार
- पित्ज-सिरदर्द वाले रोगी को मिश्री, घी तथा मुलहठी को घोटकर सूँघना हितकर होता है |
- इमली को पानी में भिगोकर छान लें | इसमें थोड़ी शक्कर मिलाकर पीने से मस्तक-पीड़ा शान्त हो जाती है |
- बकरी के दूध से मक्खन निकाल कर सिर में मालिश करने से गर्मी के कारण होने वाला सिर-दर्द दूर होता है |
- सिर को अच्छी तरह ठण्डे पानी से धोकर स्नान करना भी हितकर है |
- सागौन (teak wood) की लकड़ी को पानी में घिसकर मस्तक पर लेप करेन | पित्त के कारण होने वाले सिर-दर्द में तुरन्त आराम होगा |
- बड़ी हरड़ 10 नग लेकर, उसकी छाल निकालकर कूट लें | फिर उसे पानी में भिगोकर तीन दिन तक धूप में रखें | चौथे दिन उसमें फिर 11 हरड़ की छाल कूटकर डाल दें और तीन दिन तक धूप रखें इसमें आधा किलो शक्कर मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से सिर-दर्द के साथ-साथ पित्त के सभी विकार मिट जाते हैं |
- धनिया और आँवला समान भाग लेकर रात को भिगो दें | सुबह छानकर, मिश्री मिलाकर पियें, हितकर रहेगा |
पार्थ शिवानी