बच्चे के दूध के दांतों की देखभाल
बच्चों में दांत निकलने की शुरूआत 6 से 7 वें महीने में होती है, कुछ बच्चों में देरी से भी दांत निकलते हैं। आमतौर पर यह बच्चे के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। अगर बच्चों के दांत देरी से निकलने शुरू होते हैं तो इस में ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। दांत निकलने का क्रम सही होना चाहिए। बच्चों के दांत पहले नीचे, सामने निकलते हैं, फिर उपर के सामने के दांत आते हैं।
बच्चे के जब दांत
निकलने शुरू होते हैैं तो उसके मसूड़े सूज जाते हैं। उनमें खुजली होती है, इससे उसे हर समय झुंझालाहट होती है। इस दौरान वह अक्सर अपनी उंगली मुंह में डालता रहता है। उसे अपने आसपास, जो भी चीज दिखाई देती है, वह हर चीज को मुंह में डालता रहता है। इस दौरान सबसे ज्यादा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि बच्चा, जो कुछ भी मुंह में डाले, वह गंदा न हो। आमतौर पर यह कहा जाता है कि दांत निकलते समय बच्चे को दस्त लग जाते हैं। हालांकि ऐसा होता भी है, लेकिन इसकी खास वजह होती है, बच्चे की साफ-सफाई में बरती गई लापरवाही। बच्चे को इस दौरान दस्त तभी लगते हैं, जब कोई गंदी चीज उसके मुंह में चली जाती है।
हमारे मुंह में जीवाणु हमेशा मौजूद रहते हैं। बच्चे के जब दांत नहीं होते, उस समय उसके मुंह के अंदर जीवाणुओं की तादाद कम होती है और जैसे-जैसे बच्चे के दांत निकलते जाते हैं, जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ती जाती है, क्योंकि बच्चा जीवाणुओं को झेल नहीं सकता, इसलिए उसका पेट खराब हो जाता है और उसे दस्त लग जाते हैं। धीरे-धीरे जब बच्चा जीवाणुओं के साथ अपना तालमेल बिठा लेता है तो उसका पेट भी ठीक हो जाता है। बच्चे को शारीरिक परेशानी हो तो उसे डॉक्टर की सलाह क अनुसार दवा देनी चाहिए।
बच्चे के दांत जैसे ही निकलने शुरू होते हैं, दांतों की सफाई उसी दिन से शुरू कर देनी चाहिए। अगर बच्चा छोटा है तो किसी साफ सूती कपड़े या रूई से दांतों की रोजाना सफाई करनी चाहिए। दांत निकलते ही उन पर जीवाणुओं का हमला शुरू हो जाता है।
कई बार देखने में आता है कि डेढ़ या दो साल तक के बच्चे के सारे दांत खत्म हो जाते हैं। उनमें कैविटी हो जाती है, जो लापरवाही बरतने और साफ-सफाई न करने से होती है। दांतों की सफाई के लिए यह जरूरी नहीं है कि बच्चे दांत मंजन का इस्तेमाल करें। उनके लिए सिर्फ ब्रश से सफाई ही पर्याप्त होती है। दांत निकलने के समय बच्चे को कोई आहार दिए जाने की जरूरत नहीं होती। बच्चा दूध से कैल्शियम तो लेता ही है। इस दौरान खाने-पीने में सफाई और दांतों की सफाई ही खास होती है।
बच्चे के दूध के दांत बेशक कुछ ही सालों बाद टूट जाते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं होता कि उनका महत्व कम होता हो। बच्चे के विकास के लिए इन दांतों का काफी महत्व है। बच्चा इन दांतों की मदद से ही चीजों को चबापा सिखता है। वह बोलना तभी सीख पाता है, जब उसके दूध के दांत आ जाते हैं। बच्चे के अगर दूध के दांत टूट जाएं तो उस के स्वर उच्चारण पर असर होता है। ऐसी हालत में उस स्थान को खाली नहीं छोड़ना चाहिए और दूसरा दांत तुरंत लगवा लेना चाहिए।
बच्चों के दूध के दांतों की भी सही देखभाल की जानी चाहिए। कुछ भी खाने के बाद उसके दांतों की सफाई जरूर की जानी चाहिए। दांतों में चिपकने वाले खाद्य पदार्थ बच्चों को बिलकुल न दें, रेशेदार खाद्य पदार्थ ही खिलाएं।
बच्चों को हमेशा संतुलित आहार दें। इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि दांत एक ही बार बनते हैं। उनमें कोई विकास और परिवर्तन नहीं होता। बच्चों के भोजन में कैल्शियमयुक्त पदार्थ ज्यादा दें। कच्चे फल और सब्जियां खाने की आदत डालें, ताकि उन्हें चबाने से दांतों और मसूड़ों का व्यायाम हो सके।
बच्चे के जब दांत निकलने की शुरूआत होती है, उस समय बच्चे को किसी योग्य बाल दंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए, परंतु व्यावहारिक रूप में ऐसा संभव नहीं हो पाता है। जब आपका बच्चा दो साल का हो जाए तो उसे दंत चिकित्सक के पास जरूर ले जाएं, ताकि आपको अपने बच्चों के दांतों के विषय में उचित जानकारी और दिशानिर्देश मिल सकें।
बच्चों के दूध के दांत असमय गिर जाते हैं। उनमें कैविटी हो जाती है। बच्चों के दांतों में बड़ों के मुकाबले कैल्शियम की मात्रा कम रहती है, यही वजह है, कि दुध के दांतों में कैविटी बहुत जल्दी हो जाती है। पहले यह एक छोटे से गड्ढे़ के रूप में होती है बाद में बढ़कर पूरा दांत ही इसकी वजह से खराब हो जाता है। एक बड़े व्यक्ति को जहां हर 6 महीने में किसी योग्य दंत चिकित्सक को दिखाने की सलाह दी जाती है, वहीं बच्चे को भी हर 6 महीने में किसी दंत चिकित्सक को दिखाना जरूरी है, ताकि आगे आने वाली किसी भी गंभीर समस्या से बचा जा सके।
पार्थ शिवानी