पिता राजा पुत्र प्रजा
एक बार महाराज रणजीत सिंह के राज्य में भीषण अकाल पड़ा। तीन साल तक बारिश नहीं हुई खेतों में अन्न का दाना नहीं हुआ यह देखकर राजा बहुत चिन्तित हुए और प्रजा में हा-हा कार मच गया।
तब राजा ने सरकारी अन्न का भण्डार खोलकर सारे राज्य में बांटने की घोषणा की सभी लोग अन्न भंडार में आकर अन्न ले जाने लगे तथा राजा की जय जय कार करते उसी भीड़ में एक बूढा अपने 12 साल के बेटे के साथ दूर बैठा था वह सोच रहा था कि जब भीड़ कम होगी तभी आगे जाकर अन्न लेंगे लेकिन भीड़ कम न हुई और शाम हो गई, राजा बारादरी में बैठै हुए यह सब देख रहें थे। अन्न भण्डार जैसे ही बन्द हो रह था तभी बूढ़ा अपने बच्चे का सहारा लेकर आया और भंडारी के हाथ पाँव जोड़कर अन्न मांगने लगा भंडारी ने मना कर दिया लेकिन व गिड़गिड़ाने लगा कहने हम तीन रोज से भूखे हैं हमें थोड़ा सा दे दो। वृद्ध को दे दी वह अन्न पाकर बहुत खुश हुआ। और राजा को लाख दुआयें देने लगा और गठरी उठा ली, और चलने लगे, वृद्ध उनको आर्शावाद देने लगा तुम्हारी लम्बी उर्म हो भगवान भला करे।
जब वृद्ध का घर आ गया तो राजा ने गठरी उतार कर रखी तो पड़ोसी वृंद्ध को कहने लगे यह तो साधारणवेश में राजा है यह सुनकर वृद्ध राजा के चरणों में गिर पड़ा और माफी माँगने लगा राजा ने उठाकर वृद्ध को गले लगा लिया और कहा माफी क्यों माँगते हो अपने कोई अपराध नहीं किया है राजा तो पिता और प्रजा उसकी पुत्र यह देखकर वृद्ध बोला हम बहुत भाग्यशाली हैं जो हमे आप जैसा राजा मिला।
MORAL OF THE STORY
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि काम से कोई बड़ा छोटा नहीं होता कर्मों से होता है। हमें किसी से कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए और दूसरे की परेशानी को देखकर अनदेखा नहीं करना चाहिए उसकी मदद करनी चाहिए।
PARTH SHIVANI